लेखनी प्रतियोगिता -18-Apr-2022
हम साथ हरदम निभाते रहे,
दिल पे मगर चोट खाते रहे,
जिन्हें न चाहने को बनाया कोई बहाना,
वो खुद ही बहाना बनाते रहे ।
निगाहो में बस उनकी सुरत बसा था,
जमाना भी मुझपर खुब हँसा था,
वो जमाने कि ठोकर दिलाते रहे ,
वो खुद ही बहाना बनाते रहे।
धोखा देना है उनकी फितरत,
प्यार के बदले ,
मिली मुझको जिल्लत,
वो गैरो कि बाहों में जाते रहे ,
वो खुद ही बहाना बनाते रहे।
काफी अकेले हो गये है हम,
साथ रहने कि नियत ,
उनमें है कम ,
प्यार समझ के नही,
फर्ज समझ के वो साथ निभाते रहे,
वो खुद ही बहाना बनाते रहे ।
काश कोई घर मेरे नाम भी होता,
सुकुन का सुबह, कोई हँसी शाम भी होता,
मेरे सपनों से उनको काई मतलब ही नही,
वो गैरों का आशियाना सजाते रहे ,
वो खुद ही बहाना बनाते रहे ी
हम साथ हरदम निभाते रहे,
दिल पर मगर चोट खाते रहे,
जिन्हे न चाहने को, बनाया कोई बहाना,
वो खुद ही बहाना बनाते रहे ।
Shnaya
19-Apr-2022 04:36 PM
Very nice 👍🏼
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Abhinav ji
19-Apr-2022 08:58 AM
Nice👍
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Dr. Arpita Agrawal
19-Apr-2022 06:04 AM
बहुत खूब 👌👌
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